पटना :ब्रेकिंग विशेष लिंक पर उपलब्ध

तृष्णा प्यास,लोभ,लालच की नैया, मॅऺझधार में डूब जाती है भैया तृषा की तुणीर के खाली जाते सभी बाण, फिर कैसी आन, ये कैसी आन? मोह,मत्सर गिरा देते शैल की ऊॅऺचाई से, फिर क्यों न रिश्ता जोड़ें प्रेम की गहराई से दुर्गुणों को दें तिलांजलि और स्वविवेक को श्रद्धांजलि। काम,क्रोध,मद की दावाग्नि, न बना इसे जीवन संगिनी शूर्पणखा सरिस मंशा का, कर दे अंग- भंग प्रत्यंग। जाना किस पथ पर है, और तू चला जाता किस ओर है? नरक नदी का नहीं कूल, जीवन ओढ़े सभ्यता दुकूल। सत्पथ है उन्नति विस्तारक, आत्मसात चिर प्रज्ञा पावक प्रगति पथ लक्ष्य अलंकृत, जागृत लोचन का स्वप्न उन्मीलित। गीत भला चाहो जो शोभित, निर्मित करो नव स्वर व्यवहृत, विस्तीर्ण तिमिर रव से कलुषित, सकल व्योम हो पूर्ण आमोदित।