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वर्दी की गरिमा अहम या वर्दी की गर्मी?
मुंगेर में नए एसपी मानवजीत सिंह ढिल्लो और नई डीएम रचना पाटिल ने पदभार संभाल लिया है, लेकिन पुलिस की वर्दी पर यहां की पूर्व एसपी लिपि सिंह ने जो दाग लगाया है, उसे कोई कभी नहीं भूला सकता। वर्दी की एक गरिमा होती है और वर्दी पहनने वालों को इसका पूरा ख्याल रखना चाहिए कि वर्दी की गर्मी में अमानवीय न हो जाएं। मुंगेर पुलिस ने जो महापाप किया है, उसे लेकर आपकी तरह ही मेरे मन में बेहद आक्रोश है। पहले ही लिखना चाहती थी, लेकिन आग में घी जैसा न हो जाए, इसलिए थोड़ा इंतजार किया।
मुंगेर में बहुत पुरानी आस्था है कि जब तक बड़ी माता का प्रतिमा विसर्जन नहीं हो जाता, अन्य प्रतिमाओं का विसर्जन नहीं किया जाता। ये भी परंपरा है कि पुजारियों की पूजा-अर्चना के बाद ही भक्तगण बड़ी माता की प्रतिमा का विसर्जन करते हैं। इस परंपरा के बारे में वहां की पुलिस प्रमुख एसपी लिपि सिंह को स्थानीय नागरिकों ने बताया भी था। इसके बावजूद दीनदयाल चौक पर पुलिस इस बात पर अड़ गई कि विसर्जन करने जा रहे सभी लोग माता की मूर्ति को चौक पर ही छोड़कर चले जाएं और पुलिसवाले खुद विसर्जन कर देंगे। इस बात का कोई मतलब ही नहीं था। तब तक लोग शांतिपूर्वक जा रहे थे, कहीं कोई विवाद नहीं था, पुलिस अगर संरक्षण में जाती तो अशांति की कोई आशंका तक नहीं होती। लेकिन एसपी लिपि सिंह व्यावहारिक ज्ञान की बजाय वैधानिक ज्ञान पर अड़ी थीं कि विसर्जन फौरन हो और सबको वही करना होगा, जो वो आदेश दे रही हैं। यही होती है वर्दी की गर्मी, जिसमें गरिमा का ख्याल ही नहीं रह जाता। वर्दी की इसी गर्मी एक किशोर की ज़िंदगी छीन ली, कई को अस्पताल पहुंचा दिया।
वर्दी जितनी बड़ी होती है, ज़िम्मेदारी भी उतनी ज्यादा होती है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि अहंकार भी ज्यादा हो। इगो दिखाने की नहीं, बल्कि संवेदना दिखाने की जरूरत थी। चुनाव का वक्त है, लोगों की आस्था का विषय है, संवेदनशीलता दिखाने की बजाय अफसरी जिद दिखाने से पहले ये सोचना चाहिए था कि इसका नतीजा कितना भयावह हो सकता है। एक किशोर की दर्दनाक मौत, जो सिर्फ माता जी का विसर्जन देखने गया था, ये कितनी दुखद घटना है, इसका अंदाज़ा पुलिस को नहीं, बल्कि उस किशोर के परिवार को ही हो सकता है।
पुलिस औऱ प्रशासन की ओर से ये सफाई दी गई कि भीड़ ने पथराव किया। सवाल ये है कि पुलिस ने क्या किया? क्या गोली चलाने से पहले फायरिंग की चेतावनी दी गई? क्या भीड़ को हटाने के लिए आंसू गैस का इस्तेमाल किया गया? कोई बहुत ज्यादा भीड़ नहीं थी, चुनाव को लेकर पुलिसबल पर्याप्त संख्या में थी, जब लाठीचार्ज कर ही रही थी पुलिस तो बिना नौबत आए गोली चलाने की कोई ज़रूरत ही नहीं थी।
मुंगेर की ये घटना सीधे तौर पर एक पुलिस अधिकारी की ज्यादती लगती है। लिपि सिंह के बारे में शुरुआत में कहा गया था कि वो काबिल अफसर हैं, लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव में भी उनकी हरकतों को लेकर बाढ़ से चुनाव आयोग ने ट्रांसफर कराया था, अब 2020 विधानसभा चुनाव में उन्हें मुंगेर से हटाया गया है। सवाल ये है कि क्या इस तरह की घोर जानलेवा लापरवाही की सज़ा सिर्फ तबादला है? वर्दी पहनी है तो इसकी गर्मी मत दिखाएं, इसकी गरिमा का ध्यान रखें।